Tuesday, 18 February 2014


 ‘‘सृष्टि क्रम-और नारदीय परम्परा’’
बाबा नारदीय परम्परा के सन्त कहे जाते हैं। कुछ लोगों के अनुसार स्वयं ही वे नारद के भिन्न-भिन्न समय में जगत के भिन्न-भिन्न कारणों से भिन्न-भिन्न शरीर में रहने वाली नारदीय आत्मा है। पौराणिक सत्य के अनुसार ब्रह्मा ने जब सृष्टि संकल्प लिया तब उन्होने आत्मीय सृष्टि से मनस नामक तत्व का संकल्प किया। तदुपरान्त वे मानसिक सृष्टि का निर्माण किए। उसी मानसिक सृष्टि से वे चार ऋषि कुमारों को प्रकट किए, जो (सनक, सनन्दन सनातन, सनत्कुमार के) नाम से विख्यात हुए। मानसिक सृष्टि का यह शरीर अमर तत्व प्रधान रहने के कारण इन्हें अमर शरीर भी कहा गया। अतः इन कुमारों के शरीर का कभी नाश न हुआ, न ही होगा। परन्तु सतोगुण प्रधान इस शरीर से संसार ग्रहण न करने का संकल्प ले आज भी अदृृश्य जगत और दृश्य जगत के संधि पर खड़े होकर आत्म-रमण कर रहे हैं। वे आत्मा के आनन्द से इतने उत्पल्लवित हुए कि उन्हें रजोगुणी तथा तमोगुणी सृष्टि रास न आयी। इसके बाद सृष्टि रचयिता बहुत ही दुःखी हुए। कारण, वे लोग परमपिता की इच्छा पूरी न कर सके। तब परमपिता ने मानसिक संकल्प का आविर्भाव चित्त में किया। यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि पूर्व में ब्रह्मा ने जो संकल्प लेकर सृष्टि का निर्माण किए, उससे मनस् नामक तत्व से आत्मा का आविर्भाव हुआ। इसके बाद इन कुमारों का अवतरण हुआ। जिसे सृष्टि का प्रथम सोपान कहा गया।
 ‘‘सृष्टि
 ‘‘सृष्टि क्रम-और नारदीय परम्परा’’
क्रम-और नारदीय परम्परा’’